कवि चन्द्र प्रकाश गुप्त चन्द्र जी द्वारा 'जैसा बोओगे वैसा पाओगे' विषय पर रचना

*शीर्षक* - जैसा बोओगे वैसा पाओगे
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जैसा बोओगे वैसा पाओगे
            बबूल अगर बोओगे
आम कहां से खाओगे
                धृतराष्ट्र बनोगे ? 
दुर्योधन दुशासन ही पाओगे
          कृष्ण कहां से लाओगे 
अर्जुन कैसे वन पाओगे 
         पूतनायें भ्रमित करेंगी
  सूर्पनखायें  जन्मेगी 
       सीतायें छली जायेंगी
 देवकी कारागार पायेंगी
            दशानन दर्प करेंगे
 कैसे कंसों से प्राण बचेंगे
मासूम हंसी किलकारी को वो रोंदेंगे 
हम यदि सुशिक्षा संस्कार नहीं भरेंगे 
जो इंटरनेट की खाद पायेंगे 
पश्चिम की कुत्सित हवा खायेंगे
मां की ममता अंधी होगी
तो संतानें क्यों नहीं गंदी होंगी
अधिकारों की मांगें प्रलयंकारी होंगी
अवश्य ही तब कर्तव्यों की आहुतियां होंगी 
लक्ष्य जब भोग विलास अरु धन होगा 
मन विचार चरित्र तब कैसे उज्जवल होगा
कानून वना दो कितने भी
सरकारें जोर लगा लें जितना भी
मन के अजगर को संस्कार से भेद न दोगे
तन के लावण्य को प्रकृति सौंदर्य का वोध न दोगे
भूखे भेड़ियों को रोंदना होगा
धर्म कर्म के कुकर्म को छोडना होगा
बेटा बेटी को संस्कार प्रबल दो
सीता राधा राम कृष्ण का ज्ञान दो 
रामायण गीता का उपचार दो
स्व समाज राष्ट्र का ज्ञान दो
 स्वार्थ साधना ही यदि आराध्य रहेगी  
संतानें कैसे समाज राष्ट्र का कल्याण करेंगी
दुर्गावती मनु जैसा साहस भरना होगा
सिद्धि शारदा काली का आवाहन करना होगा
मर्यादा सबको रखनी होगी
आदर्शों की रखवाली करनी होगी
करनी अपनी भरनी होगी
महिमा भारत की रखनी होगी
स्वतंत्रता नूतनता परोपकार अन्वेषण सदैव वंदनीय है
निरंकुशता उग्रता उश्रंखलता परपीड़न सदैव निंदनीय है
जैसा बोओगे वैसा पाओगे
बब़ूल अगर बोओगे आम कहां से खाओगे

      🙏 वन्दे मातरम् 🙏

       चंन्द्र प्रकाश गुप्त चंन्द्र
         अहमदाबाद , गुजरात
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मैं चंन्द्र प्रकाश गुप्त चंन्द्र अहमदाबाद गुजरात घोषणा करता हूं कि उपरोक्त रचना मेरी स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित है
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