कल बगिया में दो फूल खिले थे,
झूम उठे मतवारे से।
हृदयातल की खुशी दिखाते,
पुलकित से मतवारे से।
कई दिनों से सींच रहा था,
अब मृग तृष्णा मिट पाई।
राह तके से देख रहा था,
जैसे बच्चे हों कोमल प्यारे से।
कल बगिया में दो फूल खिले थे,
झूम उठे मतवारे से।
मंत्र मुग्ध मुझको वो देखें,
मैं देखूँ अपनत्व का भाव लिए।
हवा उनको झूला रही थी,
बरखा सींच रही माँ का भाव लिए।
कोमल नाज़ुक पंखुड़ियां जिनकी,
मोहें जैसे नैन कजरारे से।
कल बगिया में दो फूल खिले थे,
झूम उठे मतवारे से।
तभी एक भंवरा था आया,
उनका रस पी जाने को।
अपनी भूंख से व्याकुल हो बैठा,
फूलों का रस पी जाने को।
ये भी न सोंचा उसने एक पल भी,
नवयौवन हैं कितने प्यारे प्यारे से।
कल बगिया में दो फूल खिले थे,
झूम उठे मतवारे से।
दुखित मन से देख रहा हूँ,
मैं उस क्षण क्यूँ न उनके पास रहा।
कैसे उजड़े लुटे बैठे हैं,
मूक भाषा में जो चुपचाप कहा।
महफूज़ कहाँ इस युग में बेटी,
ऐसे जैसे फूल हैं हारे से।
कल बगिया में दो फूल खिले थे,
झूम उठे मतवारे से।
कोई काँटा ही चुभ जाता,
उसके पंखों को भर पाता।
या फिर कोई पक्षी उसकी,
कुछ अंगों को नोंच के खाता।
दर्द जो सहता न जीवित रहता,
आँखों में जलते अंगारे से।
कल बगिया में दो फूल खिले थे,
झूम उठे मतवारे से।
आज देश लुटा बैठा है,
खादी की आड़ में उन्माद करे।
कानून की आंखों पर पट्टी,
न्याय उचित की मांग करे।
छिन्न भिन्न अंगों को कर दो,
जल्लादों को जलाओ तेज़ाब के वारों से।
कल बगिया में दो फूल खिले थे,
झूम उठे मतवारे से।
अनुराग बाजपेई
पुत्र स्व० श्री अमरेश बाजपेई
बरेली (उ०प्र०)
८१२६८२२२०२
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