बिन प्रेम कैसा रिश्ता कैसा नाता
प्रेम से जुड़ा संसार सारा
बेर झूठे शबरी के खाए राम ने
कान्हा ने सुदामा को गले लगाया था
यह प्रेम नही तो क्या था
दया धर्म का मूल प्रेम है
गुण प्रेम का ही मानव को मानव बनाता है
अगर प्रेम न हो दुनियाँ में
क्या होगा फिर जीवन का
अत्याचार बढ़ जाएगा
कोई न फिर रक्षक होगा
इंसान हैवान बन जाएगा
प्रेम का पाठ हर धर्म पढ़ाता
इससे ऊंचा न कोई मज़हब
ये गैरों को अपनाता हैं
दुःखियों को गले लगाता है
प्रेम से जुड़ा हर धागा है
स्वरचित
नेहा जैन
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