हमर जिवंत मैथिली कथा।#प्रकाश कुमार मधुबनी जी द्वारा बेहतरीन रचना#

हमर जिवंत मैथिली कथा।
स्वरचित रचना

हमर दाई💐💐💐💐
बचपन में जब हम पाँच छह वर्ष के भेलौ तखन हम दाई स्वर्ग सिधार गेल मुदा उ शुरुआत के दिन अखन तक हमरा याद या। आई यौ जे मन पड़ैया त लगैया
की जीवन में एक अनमोल चीज खो गेल। मुदा की करू मन मसोइड़ क रह जाय छि किया कि अपन हाथ में नै या, किछु नै क सकै छि।एकबेर जब गाम में दुर्गापूजा के दिन आबै बला छलैया तखने कनि दिन पहिले स गाम के दुर्गा मंदिर में देवी देवता के पूजा होइ छल से कलस्थापान के दिन खूब बड़का मेला लागल छल गाम में त दाई सबटा छोट छोट धिया पुता के घुमाबै ला ल जाइ छल से हमू चलेला
जिद करा लगलौ माँ कह लगलौ बौआ अहाँ नै  जाऊ अखन बहुत छोट छि कोरा में ल क दाई केना जेतै। फुसलबै के लाख कोशिश करे पर भी हम टस स मस नै भेलौ आखिर डिरियेने जे छोड़ देबै त दाई नै ल जायत सहा विचार क कनैत खिजेत माँ के तंग क दिलईये त दाई बुझ गेलै की ना मानते त कोरा में ल जा क मेला देखबै ला ल गेल रास्ता में निक निक खिलौना मिलै छल त देख क मन त लालमोहन के जेना देख मन होइ छै ओनाहीये भ गेल मुदा दाई के  कथि कहिये फेर कथि छै दाई एक एम्प्रो बिस्कुट व एकटा गुबारा खरीद देलक साथ में झिल्ली मुरही ल ल घर के तरफ चला लगलौ तखने भैया हमरा स गुब्बारा छिनै ला दौड़ल त दाई कहलकै रै घबरो नै तोहरो ला छै चल घर पर फुला देबौ। त भैया जान छोड़लक फेर की पूरा दिन ओकरे ल क इम्हर स उमहर दौड़ दलान दौड़ भन्साघर खूब रमलौ  आखिर रैमतौ कियाक नै एते मजा क क आइल छलौ। एक दिन माँ बाबूजी संग दिल्ली आबै लगलौ त दाई के अंतिम दर्शन भेल हमरा कहलक प्रकाश बौआ जुग जुग जीयू बौआ आनन्द में रहू। आय भी उ घड़ी याद आबैया। त मुख पर आलौकिक मुस्कान आयब जाय या।
फेर की एकबेर खबर मिलल की दाई आब दुनियां में नही रहल त लागल की इन्हाई कहै छै मुदा कनि छहटकर होय के बाद पता लागल की मरनाई ककरा कहै छय। फेर हमर बाबा के द्वारा ही हमर चरित्र के निर्माण भेल ओना माता पिता के त जीवन में अतुल्य योगदान होई छै।।

लेखक -प्रकाश कुमार मधुबनी।

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