बदलाव अंतरराष्ट्रीय- रा
दिनाँक -२०-९-२०२०
शीर्षक-"दहेज प्रथा"
दहेज प्रथा एक अभिशाप है
दहेज लेना देना दोनों पाप है
पल-पल डसने वाला सांप है
कई जन्मों का किया पाप है
इसका नहीं कोई भी माप है
दूल्हा भी करते इसका जाप हैं
उनके लिए सोने पे सुहागा है
जो असुंदर होते हुए भी
सुंदर पति पा जाती हैं
उनके लिए जले पे नमक है
जो सुंदर रहते हुए भी
दहेज के अभाव में
मनपसंद वर नहीं मिलता है
सदियों से चली आ रही
बहु को प्रताड़ित करने का
बहुत ही धारदार अस्त्र-शस्त्र है
दहेज प्रथा समाज का कोढ़ है
दहेज लालच की पराकाष्ठा है
दहेज प्रथा एक ऐसी प्रथा जिसमें
दहेज लेने में मज़ा आता है
देने में नानी मरती है
कहीं -कही लड़कियां भी
दहेज के लिए लड़ती हैं
पैसे वाली मगरूर लड़कियों
के लिए दहेज वरदान हैं
दहेज प्रथा लड़कियों की
सुख की खातिर बनी
जो अनजान जगह जाती हैं
किसी से कुछ मांगना न पड़े
पर लड़के वाले अपना हक
और अधिकार समझ बैठे
कुछ भी हो "दीनेश" दहेज प्रथा
एक बहुत ही बुरी प्रथा है
ये प्रथा खत्म होनी ही चाहिए
दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" कलकत्ता
रचना मेरी अपनी मौलिक रचना है।
0 टिप्पणियाँ