कविता
भारत का गीत गाता हूँ
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माना मुझमें तुमसा ओज हुंकार नहीं,
तेरी तरह मेरी जय जय जयकार नहीं,
पर मैं भी भारत की बात बताता हूं,
भारत का वासी मैं भारत का गीत गाता हूँ ।
मुझे किसी पद प्रतिष्ठा की कोई दरकार नहीं,
सत्ता की करुं दलाली मैं वह कलमकार नहीं,
मैं स्वाभिमानी कवि तिरंगा सदा लहराता हूँ,
मरे जब जवान कोई वहाँ शीश झुकाता हूँ।
महलों सभसदों का मैं रचनाकार नहीं,
मैं किसी सत्ता का रहा कभी चाटुकार नहीं,
खुद्दारी मेरी रग रग में जन जन का गीत गाता हूँ,
करता मैं साहित्यसेवा अपनी रचना सबको सुनाता हूँ।
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अरविन्द अकेला
2 टिप्पणियाँ
वाह,बहुत अच्छे। बहुत सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत अच्छे ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ।