*स्वरचित रचना*
*बेवजह की हँसी*
बेवजह की खुशी कितना सुख देती है।
वैसे तो जिंदगी कितना दुख देती है।।
जब भी हो गमों से घिरे मुस्कुराकर देखो।
मुस्कुराते ही जिंदगी कितना आनन्दित कर देती है।।
किसी के घर के सामने से निकलो
तो जरा एक पल मुस्कुराकर मिलो।
क्या हुआ जो होगी थोड़े देर तो देर ही सही।
किन्तु किसी अजनबी से मिलो तो
जरा एक पल मुस्कुराकर मिलो।।
अरे साहब ये बात सत्य है जिंदगी है दो पल की।
किसी से मिलो तो तुम उसके साथ हो ये एहसास कराकर मिलो।
जब हम किसी से मुस्कुराकर मिलते है तो, बेहतर सुकून मिलता है।
जीवन में सदैव आगे बढ़ने का जुनून मिलता है।
इसीलिये मिलो तो अपने पन का एहसास जगाकर मिलो।।
यही सुखों तो है जिसको पाना आसान नही।
जिंदगी में जो मुस्कुरा नही वास्तव में वो जिंदा इंसान नही।।
जिंदगी में केवल आनन्द मिलेगा जो तुम जिंदगी में हँसना हँसाना सीख लो।
जिंदगी में सब तुम्हारे ही होंगे जो तुम ये अमोघ गुण सीख लो।।
यही तो फर्क है जो कुछ जीते है।
मरकर भी,कुछ जीते जी मर जाते है।।
कितना मनोहर कितना सुंदर है ये जीवन इसका आभास भी नही कर पाते है।।
एड़ी चोटी का जोर लगा ले ये दुश्मन आगे बढ़ने से वो अर्चन बन नही पायेगा।
मुस्कुराते रहो सब गम छट स्वतः छट जाएगा।।
प्रकाश कुमार
मधुबनी,बिहार
1 टिप्पणियाँ
Bhaut badiya
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