रिश्ते#बंशीधर शिवहरे मेहता जिला सिवनी एम पी जी द्वारा बेहतरीन रचना#

विषय  रिश्ते

रिश्ते को दौलत से मत तो लो,
रिश्तो में भी अपनापन हो ।
दौलत तो आती जाती हैं,
धनवान हो या फिर निर्धन हो।।
धनवान से दूर का रिश्ता भी,
लोगों को सगा सा लगता है ।
निर्धन कोई अपना वाला हो ,
फिर क्यों वह पराया लगता है ।।
रिश्ते में बड़ा हो कोई हमसे ,
हरदम उसका सम्मान करो ।
काबिल हों हम कितने ज्यादा ,
फिर भी ना कभी गुमान करो।।
सबसे पवित्र मां का रिश्ता ,
मां बिछड़ के कितना रोती है।
एक गाय लवाई बछड़े से ,
मिलने को आतुर होती हैं ।।
एक पंछी है चिड़िया देखो ,
जो दाना चुन चुन लाती है ।
भूखी खुद ही रहे मगर ,
अपने बच्चे को खिलाती है ।।
रिश्ता  पत्नी का इस जग में,
सबसे निराला होता है  ।
मां-बाप को छोड़ के आती  हैं,
जो बचपन से पाला होता है।।
हे मित्र का रिश्ता इस जग में,
श्री कृष्णा ने सबको सिखलाया ।
थी दिन सुदामा की कुटिया ,
जिसे कंचन महल था बनवाया ।।

        बंशीधर शिवहरे मेहता
         जिला सिवनी
                  एम पी

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