बिटिया#मीनू मीनल जी द्वारा अद्वितीय रचना#

बिटिया दिवस मना कर बैठी ,खबर आई है हाथरस की
घर से निकल वापस न आई, बात करूँ क्या मन बेबस की

 रोज रचनाएँ रचती रहती निर्भया की मौतों की
कबतक लिखती रहूंँगी मैं,कुकर्मियों के कुकृत्यों की

 मंदिर- मस्जिद करते रहते रोक नहीं सकते बलात्कार
अच्छे दिन कब आएंँगे कानों में नहीं जाती चीत्कार

 खून की उल्टी करती बिटिया पुलिस कहे झूठ बोलती
हुआ इसे कुछ भी नहीं बहाने बनाकर है लेटी

 अरे बेशर्मो ,जहाँ नग्न -नुँची बेटी को मांँ चादर ओढाए
अरे पापियों, खुदा तेरी चमक-दमक वाली वर्दी   ढहाए

गैंगरेप कर गर्दन तोड़ जीभ काट दी जाती है ।
गरीब की बेटी पर दबंगई चल ही जाती है ।

सुबह सबेरे सूरज कर गया घुप्प अंँधियारा 
माँ -बाप की बिटिया डूबी डूबे चांँद सितारा।

मीनू मीनल
©®
राँची

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