🎂 चाँद सी हँसी🎂
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मन का प्राँगण सुना-सुना,
जिन्दगी बड़ी उदास सी थी।
सबकुछ था मेरे पास पर जिन्दगी,
बेरौनक सूने आकाश सी थी।
तभी पतझड़ में बहार मुस्कुराई।
चाँद सी सुन्दर पुष्प सी कोमल,
एक कली,परी सी धरती पे आई।
खिलते फूलों सी ज़िंदगी मुस्कुराई,
नन्ही कली भी हँसी -खिलखिलाई ।
यूँ लगा मुझें, बहारो ने गीत गाया,
मेरा बचपन फिर से लौट आया।
संग-संग मेरी गोद मे खेलती,
कभी उछलती किलकारी भरती।
नन्हें-नन्हें हाँथो से मेरा स्पर्श कर,
कभी बालों को मुठ्ठी में पकड़ हँसती।
झूठ-मुठ की मैं रो देती, हो उदास,
मुख कर मेरा ऊपर मेरे भाव परखती।
कभी दौड़ती कभी दौड़ाती छुपकर,
मेरे पीछे पल्लू में मुझकों मुँह चिढ़ाती।
खेल-खेल गीली मिट्टी में थोड़ा सा ,
मिट्टी चख लेती फिर मुझें भी आमंत्रण देती।
कर कल्लोल कोलाहल अपनी भाषा मे गाती,
मैं आंनदित मन से ईश्वर का शुक्र मनाती।
एक चाँद बिहंसता नभ के ऊपर,
दूजा चाँद जमीं पर खिलखिलाया।
खिलें पुष्प सी खिली-खिली वो,
हँसती जैसे झंकृत हो पाँवो में ,
चांदी का जगमग करता एक नूपुर।
दुनियाँ की सबसे होती सुखद अनुभूति ,
प्यार लुटाये एक दूजे पर दादी-पोती।
देख मासूम सी बाल-क्रीड़ा अंबर भी,
आंनदित हो बरसायें बूंदों के मोती।
मेरे मन के प्रांगण में खुशियों का,
सावन फिर झूम-झूम के आया ।
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स्वरचित और मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
कवयित्री-शशिलता पाण्डेय
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