तीर#नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर जी द्वारा शानदार रचना#

 तीर में धार नहीं आती
जंग खाई तलवार में मार नहीं आती।।
जरुरी नहीं की सांसो ,धड़कन का
आदमी ,इंसान जिन्दा हो ।
पुतला भो हो सकता है पुतलों के
कदमो की चाल आवाज नहीं
आती।।
जिन्दा आदमी उद्देश्यों के आसमान में उड़ता बाज़
अवनि की हद हस्ती गरिमा का जाबांज।।
जिसके तरकस के तीर नहीं
बुझते।
जिसके तलवारे जंग नहीं खाती
जिसके उद्देशोयो पथ पर नहीं
आती बाधा जिसके पथ पर अंधेरो का रहता नहीं नामो निशान।।
जिसके कदमों की आहट को लेता
समय काल पहचान

जिसकी सक्रियता का वर्तमान
पीढ़ियों का प्रेरक प्रसंग प्रेरणा का
युग में प्रमाण।।
जन्म मृत्यु के मध्य का भेद मिटा
रहता सदा वर्तमान गर चाहो गिनना नाम ।।                       

थक जाओगे 
परम् शक्ति सत्ता ईश्वर
की रचना का मानव या ईश्वर 
का प्रतिनिधि पराक्रम का 
परम प्रकाश।।
युग मानव कहती दुनियां 
पता नहीं खुद उसको चल 
पड़ा किस पथ पर धरा धन्य
युग में कहाँ पड़ाव।।

चलता जाता निष्काम कर्म के
पथ पर छड़ भंगुर पल दो
पल की सांसो धड़कन के संग
अकेला निर्धारित करने एक
नया आयाम।।
गुजर जाता जिधर से बूत पुतलो
में आ जाता अपने होने का विश्वाश।।
जड़ को भी चेतन कर देता सृष्टि
सार्थक का मानव।
कहता कोई महान कोई कहता
शूरबीर जाने क्या क्या कहती
दुनियां लेकिन निसफिक्र निर्विकार
 चलता जाता अपनी
धुन में नए जागरण जाग्रति का 
सदा वर्तमान।।                     

जिन्दा हो जागती कब्रो की
रूहे शमशान के मुर्द्रे भी जीवित
हो जाते ।
बुझे तीर को देता कोई धार
जंग लगी तलवारों से भी लड़ता
जीवन का संग्राम कभी अतीत
नहीं ह्रदय ह्रदय में जीवित का
आदर भाव युग तेज का शौर्य
सूर्य नित्य निरंतर प्रवाह।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

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