*स्वरचित रचना*
*धन्यवाद*
मुझे उस हालात से बाहर निकालने को धन्यवाद।
मुझे और मेरी स्थिती को सुधारने को धन्यवाद।।
यू तो स्वयं का परछाई भी साथ नही दे वक्त पे।
किन्तु जरूत के समय साहस बढाने को धन्यवाद।।
जब अपनो ने ही मुझे गैरों से बढ़कर ठुकराया।
बनकर मेरा हितैषी उससे उबारने को धन्यवाद।।
तमाशा देखने वालों कमी नही मुझे रोते देखकर।
जैसे कोई आतंकी खुश हो दूसरों के घर तोड़कर।।
उस हालात में मुस्कुराये कैसे ये सीखाने को धन्यवाद।
बन के दीवार मेरे आशियाने को बचाने को धन्यवाद।।
गीदड़ की तरह डरना सीखा हर वक्त जिस दुनिया ने।
बनके आइना हकीकत से रूबरू कराने को धन्यवाद।।
मुझे पता है कि आप मुझे इसी तरह जीवन साथ दोगे।
कुछ इसी तरह से यू अपनापन निभाने को धन्यवाद।।
*प्रकाश कुमार मधुबनी*
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