कवयित्री नीलम डिमरी जी द्वारा 'शबनम' विषय पर गज़ल

नमन वीणा वादिनी
दिनांक--01/09/2020
विषय ----शबनम
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विधा --ग़ज़ल
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सुबह-सुबह फोन में शबनम की बूंदों को देखा,
मैं छूने लगी उन्हें तो गिरते मोतियों को देखा।

जो पल गुजर गया वह मात्र एक सपना था,
धूप की पनाह में बिखरती हुईखुशबू को देखा।

रात, बारिश, हवा, चांद- तारे का खूबसूरत नजारा,
मैंने शबनम तुम्हें धरा पर गिरते हुए देखा।

फूल भी खिले गुलशन में यूं बारंबार,
मैंने इस दिल को कई बार टूटते हुए देखा।

हम ही शोला हैं और हम ही शबनम हैं,
कई रंग हमारे हैं, तुमने कौन सा रंग देखा।

कैसे पहुंचाएं अपने दिल की बात तुम तक हम,
जवाब तुम्हारा चाहिए अब खत हमने देखा।

पास तेरी आएंगे यू कांटो पर चलकर,
तुम्हारे कदमों के नीचे बिछा गुलिस्तां देखा।

तुम शबनम ही रहना शोला न बनना "नीलम",
तुम्हारी चाह की नजाकत को पिघलते देखा।


     रचनाकार ----नीलम डिमरी
    गोपेश्वर,,, चमोली
         उत्तराखंड

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