कवयित्री- आ.गीता पाण्डेय जी द्वारा सुंदर रचना..

भारत माँ ले तिरंगा,शेर पर हुई सवार।
निकल पड़ी है, दुश्मनों पर करने वार।

जो भारत माँ का सोच रहा है अनिष्ट। 
जिसमें चीन,पाकिस्तान है उभयनिष्ठ।

जो सीमा पर कर रहें,नापाक हरकत।
सोचते भारत का, न हों कोई बरकत।

उनकी तुच्छ व घृणित है, मांसिकता।
सबक देने पर भी पाक नहीं सीखता।

चीन भी आदत से नहीं आ रहा बाज।
गलवान की घाटी में गतिरोध है आज।

भारत माँ को सशक्त रहने का सपना।
एक सौ तीस करोड़ लोगों का अपना।

विश्व गुरु की, दुनिया ने दी थी उपाधि।
स्वामी विवेकानंद के शिकागो समाथि।

माॅ भारती के चरणों में है शीश नमन।
जन-जन की खुशहाली, खिलें चमन।

गीता पाण्डेय, कर रही है अभिनंदन। 
दुनिया में माॅ भारती का ही हो वंदन।


स्वरचित कविता 
गीता पाण्डेय 
रायबरेली, उत्तर प्रदेश

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