अच्छे दिन# कवियित्री शशिलता पाण्डेय जी द्वारा बेहतरीन रचना#

🌹अच्छे दिन🌹
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दुर्दिन पर दुर्दिन बीत गए,
    अब,"अच्छे दिन कब आएंगे"?
        सुखी रोटी चिबा-चिबा कर,
          दिन पर  दिन बीत जायेंगें।
एक ओर मंहगाई का आलम,
   दूजे "सोने में सुहागा" ये बेरोजगारी।
      ऊपर से खून के आँसू रुला रहा,
        ये लॉक डाउन कोरोना महामारी।
राशनकार्ड का सस्ता राशन,
   "पाँच किलों" में पुरें महीनें खायेंगें।
      औकात से महँगा गैस सिलिंडर,
          कनेक्सन मुफ्त में ही पायेंगें।
500₹महीनें में घर का पूरा खर्चा,
  पेट- भर भोजन खायेंगें और खिलाएंगे।
      दुर्दिन पर दुर्दिन बीत रहें है तो क्या?
          बुरे दिन के काले बादल भी छंट जायेंगें।
पाँच वर्षों के बाद कुछदिन चुनावी त्योहार,
    मनायेंगें और हलवा-पूड़ी जमकर खायेंगें।
       अपनें जनता के सेवक से सेवा भी पाएंगे,
        दुर्दिन पर दुर्दिन बीत रहे अच्छे दिन भी आएंगे!
महँगाई दूर भगायेंगे रोजगार दिलायेगें ,
  अपनें देश की जनता को भूखें मरनें से बचायेंगे।
      अच्छे भाषण से हम जनता को समझाएंगे,
        अच्छे दिन और सुखी जीवन का गाना गाएँगे।
जनता के सच्चें सेवक को हम फिर जितायेंगे,
दुर्दिन पर दुर्दिन बीत रहें, अच्छे दिन भी आयेंगें।

👍समाप्त👍 स्वरचित और मौलिक
                        सर्वाधिकार सुरक्षित
               लेखिका:-शशिलता पाण्डेय

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