कवयित्री शशिलता पाण्डेय जी द्वारा 'जीवन की सहेली' विषय ओर रचना

       ❤️ जीवन की सहेली❤️
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मेरी जिंदगी थी एक अनबुझ पहेली,
एक काली बदली घिरी थी अँधेरी।
मैनें जब से बनाया  लेखन को सहेली,
चमका एक चाँद जगमगाई रात गहरी।
लिख डाला सारे मन के भाव अपने,
मेरी काव्यरचना सुन्दर भावों से भरी।
मैनें देखे थे भविष्य के जो सपने,
मेरी जिंन्दगी में लेखन चाँद बन चमका।
लेखनी ने मेरे अन्तर्मन को उकेरा,
मेरी आंतरिक पीड़ा एक फोड़े सी उभरी।
अनछुए अनदेखे उन पहलुओं को झकोरा,
मेरी लेखनी अंधेरे का चाँद बन के चमकी।
जब से बनाया मैनें लेखन को सहेली,
अँधेरे की किरण बन के मिटाया अंधेरा।
जब घिरी जिन्दगी में कोई काली बदली,
मिला नया सहारा परखाअसली चेहरा।
जिन्दगी की काली रात जगमगाई,
जबसे मैनें लेखन को बनाया सहेली।
बहारों का मौसम लगता अब सुहाना,
सारी पीड़ा सारे गम दुखदर्द भूली।
रोम-रोम गाता खुशियों का तराना,
मेरी लेखनी अंधेरे का चाँद बन जगमगाई।
मन को खंगाला सारी पीड़ा लेखनी में निकाला,
जो रखा था छुपाकर उसे लेखनी में उतारा।
जबसे मैनें लेखन को बनाया था सहेली,
अब मैं लेखिका बन रही हूँअलबेली।
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स्वरचित।और मौलिक
सर्वधिकार सुरक्षित
कवयित्री-शशिलता पाण्डेय

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