भोजपुरी मुक्तक#बाबूराम सिंह कवि जी द्वारा बेहतरीन रचना#

🔥भोजपुरी मुक्तक 🔥
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मुदइयों   मारल    ना    जाला।
केहु  के  लेलकारल  ना जाला।
सभ  में भगवान  बसल   बानी-
एही  से   दुत्कारल  ना  जाला।

जो   निमन   के   बाउर  कहबी।
नरके  परबी   अपयश    सहबी।
जब  बाउरे  सभका    से बोलबी-
तब  केकरा  से   निमन    रहबी।

पढ़ला -लिखला  से   का  भईल।
जब  रहनी  मन   बिगडी़  गईल।
बाउरे  में   लथपथ   हो    करके-
बहुते लोग एही  जा सरी  गईल।

सोच   समझ    कुछउ    कहबी।
का  पता  बा  कि  कबले  रहबी।
छोट -बड़   बोलीयें   कई    देला-
तब    काहे   गढ़हा    में   परबी।

अबहूसे  जागी   निमनमें  समाई।
सुधरे समाज उ  अजोर  फइलाई।
तोप तलवार बम बनिके  का होई-
सुई बनी सभकाके एकमें मिलाई।

बाउर बवाल बद केकहाँ मोल बा।
निमन मिठबोली में प्यार घोल बा।
इहे त लोक-परलोक के बनावेला-
तब राउर बोलीकाहे डवाडोल बा।

केहुए से  केहु अब  कहा कम बा।
बोलिये बतादेला केतनाले दम बा।
हम हम कइलासे सभका भेटाइल-
जिनगीमेंआफत दुख दाह गम बा

सतयुग , त्रेता  , व्दापर, कलयुग।
बांचल  ना    बाटे   कवनो   युग।
निमन    बाउर   त    पक्का   बा -
होते    रही    हरदम    युग  -युग।

बाउर     छोडी़     निमन    करी।
झंझट    झगरा   में    मती   परी।
भोजपुरी   महिमा    बनल    रहे-
आगे   बढी़  कुछू  अइसन  करी।


आपस  में  सभे   भाई -भाई  ह।
एहीमें   सभ   कर   भलाई    ह।
निमन  बाउर  बेटा -  बेटी   सभे-
भोजपुरी   सभ  कर   माई    ह।

कबो   बाउर   में   पइठी   मती।
आलस कके कबो   बइठी मती।
निमन   लिखी   निमन    सिखी-
अपनी अभिमान में अइठी मती।

मती  मारी  गइल   बाटे  ओकर,
जे   बनत  दबंग  आ  दाबू  बा।
केहु    के    केहु    समझा     दे,
केकरा    में  अइसन  काबू  बा।
अपने    समझ  बुझ   से   सुधर ,
सहुर सीख  लिहल जे दुनिया में-
उहे   सभका    से   बडहन   बा,
उहे    ए    जग    में    बाबू   बा।

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बाबूराम सिंह कवि
बड़का खुटहाँ , विजयीपुर 
गोपालगंज(बिहार)८४१५०८
मो०नं०- ९५७२१०५०३२
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