कवि- आदरणीय प्रकाश कुमार मधुबनी द्वारा सुंदर रचना..

*मोबाईल का कहर* 

 *स्वरचित रचना* 

हाई बेड़ा गड़क हो तेरा मोबाइल।
ना जाने क्या क्या तुने छीना।
बन्ध गया हूँ इस कदर यार मेरे।
की तुझसंग मिलकर भूल गया जीना।।

कल की बात कहूँ मुझसे लगी पत्नि
बोलने।
मैं सोचा नजरअंदाज कर दू 
किन्तु वो लगी हर राज खोंलने।।

पत्नि क्या जी जब तब मेरे सौतन से बतियाते हो।
रहते खोये खोये किन्तु समझ नही पाते हो।।

मैं तो था पूरा चकराया।
पैर से सर तक पसीना आया।।

मैंने बोला ओ देवी जी बात तो पूरी मुझे बताओ।
कौन सी कहाँ की सौतन जरा मूझको स्प्ष्ट समझाओ।।

वो बोली ओ मेरे प्यारे स्वामी।
इतने तुम तो नही हो अज्ञानी।।

वही सौतन जिसे तुम मुझसे ज्यादा मानते हो।
कहते हो आधा जान मैं हूँ किन्तु पूरा उसे मानते हो।।

क्या आजतक भला तुमने मुझे घुमाया है। 
मैं रहती अकेली घर पर किन्तु उसे जहां दिखाया है।।

देखो देवी मुझपर यू इल्जाम ना लगाओ।
मेरी तुम्ही अर्धांगिनी हो और कोई नही समझ जाओ।।

फिर क्या था तभी मेरे दोस्त का फोन आया।
मैं तुरन्त जाकर लपककर फोन फिर उठाया।।
फिर उसके भाव को देखकर मैने फोन बंद किया।
बिन सोचे समझे आवाज अपना बुलन्द किया।।

पत्नी बोली देखो जी मोबाईल ही मेरी सौतन है।
मैं सोलह श्रृंगार करू तुम्हारे लिए किन्तु ये तो मेरी दुश्मन है।।

जब भी चाहूँ प्रेम करू बार बार इसका घण्टी बज जाती  है।
वो तो भला हो मैं डांटती हूँ नही तो कोई और औरत उधर से बतियाती है।
मैं कहता हूँ बात कराओ उनसे किन्तु वो जाने क्या सुनाती है।।

अब तुम छोड़ आओ उसको 
मेरा यही एक काम करो।
अब बहुत हुआ उसके लिए
 जीना मेरे संग आराम करो।।

मैं बोला जरा उस प्राणी का नाम तुम बता दो।
या तो तुम मूझको स्वयं से शूली पर चढ़ा दो।।

वो बोली का जी सायद कुछ लोग मोबाईल कहके उसे बुलाते है।
जाने कौन सी खूबसूरती है उसमें देख उसको ही मुस्कुराते है।।

वो तो कोई जादूगरनी सबपर जादू करती है।
इसी कारन ना जाने कितनी औरते मरती है।।

अब मेरे समझ में सब आ गया।
दूर रख दिया मोबाईल फिर पत्नी संग मुस्कुरा दिया।।

तो दुनिया वालों अब मानो प्रकाश का कहना।
कुछ समय के लिए मोबाईल को छोड़ कर परिवार के संग रहना।।

प्रकाश कुमार
मधुबनी, बिहार

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