कवयित्री नेहा जैन जी द्वारा 'जीवन' विषय पर रचना

बूंदे चाहे आंसू की हो
ओस की
अपना अस्तित्व तो रखती है
कुछ देर के लिये है सही
अपने वजूद को दर्शाती है चमकीली सी यह नन्ही बूंदे
कितना कुछ कह जाती है
सुंदर सुंदर यादें भी
इनमें समाती है
बूँद बूँद यह जीवन भी
ऐसे ही बनता मिटता रहता है
कितना सँभालूंगी इसको
यह हाथ से फिसलता है
जीवन ये कतरा कतरा 
यूं ही गुज़र जाता हैं
रख लूं इन बूंदों को हथेली पर
डरती हूँ इनके टूटने से
सामीप्य मेरे इनको तोड़ न दे
मेरा राज खोल न दें
इनमे खुद को मै कैद पाती हूँ
लम्हा लम्हा घड़ी के कांटो पर
बूंदे ये बनती मिटती रहती है साथ मेरे अस्तित्व का
मुझे भान कराती हैं
कद छोटा हो भले ही
वजूद बड़ा होता हैं
हर सपने का अपना आयाम होता है
बूंद बूंद में जी गई मैं जीवन अपना सारा
बूँद बूँद मिला आत्मसम्मान का
गहना सारा।।
स्वरचित
नेहा जैन

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