कवि व लेखक रामबाबू शर्मा जी द्वारा 'कहानी गद्य विधा' में

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       *लेख- कहानी गद्य विधा*
             दिनांक -1.9.2020
     घोषणा- यह घोषणा की जाती है कि यह मेरी स्वरचित रचना है।
                  *कहानी*
            *रोटी का टुकड़ा*
                 
                  बात उन दिनों की है जब मैं बहुत छोटा था, अर्थात मेरी बाल्य अवस्था थी। घर में सबसे छोटा होने के कारण सब मुझे विशेष स्नेह और बहुत ही लाड़ प्यार से रखते थे।दादाजी दिन भर बैठे- बैठे कुछ न कुछ करते रहते थे। जिनमें मूंज कूटना,रस्सी बनाना, चारपाई बनना, झाड़ू,नेज,आदि कोई न कोई काम करते और आराम भी कर लेते,नियमित रूप से खेत पर जाना चक्कर लगाना,घर के आगे नीम के पेड़ पर पक्षियों के लिए पानी पीने हेतु पुरानी मटकी का पात्र बनाकर उसमें पानी भरना,दाना डालना, इस तरह से यह उनकी दिनचर्या का एक हिस्सा था। संध्या के समय भगवान के दीपक लगाना,आरती माला जाप  वह सब बच्चों को बिठाकर रामधुनी, कहानी सुनाना बहुत अच्छा लगता था।
                 यह सब देखकर मैं भी दादाजी की मदद करता पर मेरे नटखट वह बिना समझ के कारण काम में गलती हो जाती पर दादाजी जानते हुए भी उसे नजर अंदाज कर देते साथ ही कभी कभी आंखों में गुस्सा करते पर मुझे देखकर हस भी जाते,किसी दिन अगर मैं नहीं जाता तो मुझे बुलवा लेते जोर से आवाज लगाते फिर मैं बड़े ही नखरे, मान मनवार से जाता और दादाजी खुश हो जाते। पक्षियों के प्रति इतनी आत्मीयता की बहुत सारे पक्षी दादाजी के पास आते, चले जाते, फिर आ जाते, इतना सुन्दर मनभावन, मनमोहक दृश्य देखने लायक नजारा।
              इस तरह से समय चलता रहा, दादाजी मेरी खुशियों का पूरा ध्यान रखते कभी कभी घर में मुझ से गलती हो जाती तो सब बेचारे दादाजी की ओर इंगित करके कहते कि इनके लाड प्यार ने बिगाड दिया,वे भी मंद- मंद मुस्कराते और मुझे धीरे से इसारा कर बुलवा लेते।
                अब दादाजी अपने साथ खेत पर मंदिर आदि में मुझे साथ ले जाने लगे, मैं भी उनके साथ जाकर बहुत खुश होता और न जाने क्या क्या पूछता वे सबका उत्तर देते,बताते,समझाते कभी कभी मुझे अपने कन्धे पर बिठा लेते, पर *अचानक* एक दिन एक *रोटी का टुकड़ा रास्ते में पड़ा मिला* उसे देखते ही दादाजी ने उठाकर माथे पर लगाया और अपनी जेब में रख लिया,घर आकर उस रोटी के टुकड़े को दादाजी ने हाथ जोड कर अनाज के भंडार में रखवा दिया।यह सारा घटनाक्रम मैं देखता रह गया और दादाजी से पूछ ही लिया.. मेरी बाल ज़िद के आगे वो टिक नहीं पाये साथ ही जीवन में अन्न का जो महत्त्व है उसे विस्तार पूर्वक समझाया तथा *अन्न को भगवान का रूप बताया फिर कहा कि यह अन्न भगवान है*
                इस बदले हुए परिवेश एवं आपाधापी के इस युग में पढ़ें लिखे और समझदार कुछ लोग अन्न के महत्व को क्यो नही समझ पाये यह पीड़ा मन ही मन मुझे बहुत सताती है,आजकल घरों में झूंटन,बड़े-बड़े आयोजन,शादी पार्टियों में झूंटन के रूप में नाली में बह जाता है,कोई भी इसके महत्व को नहीं समझ पा रहा है या जानते हुए भी अपनी शान -ओ-शौकत के कारण अनजान बन जाते हैं,जबकि समाज में बहुत से लोग आज भी दो जून की रोटी का इंतजाम बड़ी मुश्किल से कर पाते हैं।
          मुझे आज भी दादाजी का जीवन में *अन्न के प्रति वो समर्पण भाव याद है और हमेशा रहेगा* काश समय रहते वो लोग भी इस भाव को समझें..

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    रामबाबू शर्मा, राजस्थानी,दौसा(राज.)

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