मेरी बेटी मुझको अपने कितने रूप दिखाती है।
कभी बैठ गोद में मेरी ममता से मुझे नहलाती है।
कभी परी बन मुझे परियों के देश ले जाती है।
कभी कान्हा बन मुझे अपने आगे पीछे घुमाती है।
मेरी बेटी मुझको अपने.....
कभी अक्स बन मुझे मेरी ही छाया दिखाती है।
कभी बचपन से अपने मुझको खूब लुभाती है।
कभी चांँद बन मुझको नभ की सैर कराती है।
मेरी बेटी मुझको अपने......
कभी सहला दिल को मेरी सखी बन जाती है।
कभी कभी तोजैसे वह मेरी मांँ भी बन जाती है।
कभी डांटती मुझे मेरी दादी नानी बन जाती है।
मेरी बेटी मुझको अपने कितने रूप दिखाती हैं।।
कभी उड़कर नील गगन में दाना भी ले आती है।
कभी मौके पर तो वह लाठी भी बन जाती है।
कभी जीवन कभी मंजिल मेरी वही एक थाती है।
मेरी बेटी मुझको अपने कितने रूप दिखाती है।।
स्वरचित
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