बातचीत एक गुलाब से#आशुकवि प्रशान्त कुमार"पी.के. जी द्वारा खूबसूरत रचना#

नमन मंच 
            प्रभात लेखन
            *शुभप्रभात*
*बातचीत एक गुलाब से* -:
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*ऐ जनाब गुलाब!* 
*तू तो सिर्फ गुलाब है!*
*तुझसे तो सिर्फ कुछ देर के लिए चमन ही महकता है।*
*हमारे घर पर भी एक गुलाब है,*
*जिसकी ख़ुशबू से न सिर्फ हमारा पूरा परिवार महकता है,*
*बल्कि हम बेटे, बेटियों का जीवन महकता है।।*
*तू तो कुछ देर के बाद मुरझा भी जाता है।*
*पर मेरा गुलाब तो मुरझाकर भी हम बेटे बेटियों को हमेशा तरो - ताजा बनाये रखता है।*
*तुझे छूने वाले को तू काँटे चुभोता है।।*
*पर मेरा गुलाब हम बेटे, बेटियों के जीवन से काँटो मुश्किलों स्वरूप काँटो को निकालता है।*
*न सिर्फ निकालता है बल्कि उनका बेटा उस गुलाब के अंक में लिपटकर सोता है।*
*ऐ जनाब गुलाब*
*"कोई और नही है वो सिर्फ मेरी बूढ़ी माँ है।"*
 *ऐ गुलाब तू क्या है?*
*ऐ गुलाब तू क्या है?* 
*मेरा गुलाब मेरी जिंदगी का ख्वाब मेरी माँ है।।*
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आशुकवि प्रशान्त कुमार"पी.के."
   पाली हरदोई (उत्तर प्रदेश)

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