नारी#सुधा सेन 'सरिता 'रीवा मध्यप्रदेश#

नारी 
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नारी को नारी बनने को, कितना कुछ सहना पड़ता है ।
इस जग में रहने की खातिर, मर- मर कर जीना पड़ता है ।
जग में आने के पहले ही, यह तो ठुकराई जाती है ।
दिखलाती जीवटता यह तो, पैदा होकर ही आती है ।
अपमान के घूँट पीती है, फिर हँसकर आगे बढ़ती है ।
मै ही जीवन की दाती हूँ, हर बार जताना पड़ता है ।
         इस जग में रहने की खातिर .......

गलती तो की थी रावण ने, सीता हरने का पाप किया ।
क्या उसमें गलती सीता की, क्या सीता जी से पाप हुआ? 
रावण की गलती की खातिर, अग्नी से गुजरना पड़ता है ।
खुद को सच साबित करने को, धरती में समाना पड़ता है ।
          इस जग .......
पुरुषों की धर्म लड़ाई में, छल का शिकार हो जाती है ।
छल करते जो बच जाते हैं, अहिल्या शापित हो जाती है ।
सत्य आचरण होती फिर भी, कुलटा कहलाना पड़ता है ।
गैरों के पाप मिटाने को, पत्थर की होना पड़ता है ।
         इस जग में रहने .......
जिस माँ ने हमको जन्म दिया, ममता धारा से सींचा है ।
जिन बाँहों के झूले झूले, उन सबको तजना पड़ता है ।
इस खूँटे से उस खूँटे पर, पशुवत् भी बँधना पड़ता है ।
तजना पड़ता सर्वस्व यहाँ, पर- वश हो जीना पड़ता है ।
         इस जग में रहने ......
आँखों में आँसू लेकर भी, मुस्कान सजाती होठों  पर ।
दुख- दर्द सभी सह जाती है, खुशियाँ बरसाती है सब पर ।
निज मन में पलते रहते जो, अरमान दबाना पड़ता है ।
अस्तित्व बचाने की खातिर, बलतः मुसकाना पड़ता है ।
         इस जग में रहने ...... 
दिल कहता है बाएँ चल तो, दाहीने चलना पड़ता है ।
हिय से बरबस ही उठता जो, गूबार दबाना पड़ता है ।
हसरत मन की मन में रखकर, रस्मों को निभाना पड़ता है ।
मुसकान सजा कर होठों पर, खुद को ही छलना पड़ता है ।
       इस जग में रहने .......
सुधा सेन 'सरिता 'रीवा मध्यप्रदेश

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