कवयित्री- आदरणीय मधु भूतड़ा जी द्वारा सुंदर रचना...

*नमन*

*दिनांक - 12.09.2020*

*विषय - माँ अक्षरा  एवं उनकी स्मिता*

*शीर्षक - शुभ वंदन*

माँ सरस्वती का करती हूँ
बचपन से वंदन अभिनन्दन 
अन्तःस्थल में विराजी मेरे
श्वास श्वास प्रति पल स्पंदन

संगीत कला साधना सहज 
ममतामयी करुणा स्वरूप
शुद्ध सात्विक बना जीवन
उनके स्वभाव के अनुरूप

कलम को दिया तूने सृजन
शब्द अक्षर ज्ञान खूब अपार
रचनाओं का श्रवण करती
मैं एक नहीं बारंबार 

मन में जला ज्ञान दीप
मिली ख़ुशियाँ हज़ार
रोम रोम तृप्त होता मन 
बल बुद्धि विवेक का भंडार

चरणों में मेरा शीश नवाती 
हर पल तेरे सद्गुण गाती
कोकिल स्वर गायन कर 
मधुर धुन संगीत सजाती

शिक्षण संस्थान से मिला 
माँ प्रतिमा का मुझे उपहार 
सज रहा अब मंदिर प्रांगण
पारिजात फूलों का श्रृंगार। 

सत्य संयम स्नेह वरदान
जीवन का सुखद संयोग 
लक्ष्य विशिष्ट नव चैतन्य
लेखनी समय सदुपयोग। 

न राग द्वेष न अहंकार रखूं
न किसी से हो मुझे बैर भाव 
न निकले मुख से कटुक वाणी
न हो किसी के अंतर्मन घाव। 

बसंत पंचमी पीले परिधान
पहन सजाती रंगोली अपने द्वार
मृदुल स्वभाव सहज सरल मन 
शुभ कर्म वाणी करो उपकार। 

जीवन में उमंग उल्लास
आभास प्रतिभाष हर पल ख़ास
माँ शारदे के अनंत आशीषों से
गुणी पैनी कलम रचे नया इतिहास। 

माँ अक्षरा एवं उनकी स्मिता
मेरा प्रेम मेरी भक्ति शक्ति आराधना
सुख चैन से सब रहे इस मूल जगत में
करती ये "मधु" तुझसे बस यही प्रार्थना।

*मधु भूतड़ा*
*गुलाबी नगरी जयपुर से*

#ekpehalbymadhubhutra

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