आत्मसंतोष#लघुकथा#अरविंद अकेला#

लघुकथा 
        आत्मसंतोष
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      रिया एक नये जमाने की एक मॉडर्न एवं महत्वाकांक्षी लड़की  थी,जिसके फैशन एवं पहनावा के प्रति बहुत हीं खुले विचार थे। एक दिन वह जालीदार काली कपड़े वाली ड्रेस पहनकर दोपहर में सड़कों पर टहल रहीं थीं। पीछे से दो बाइक पर सवार चार लड़के उसे घूर रहे थे तथा उसपर गंदी गंदी फब्तियां कस रहे थे। कोई उसे हाथ पकड़ने की कोशिश कर रहा था तो कोई उसके गाल छूने का प्रयास कर रहा था। 
         तभी पीछे से मोटरसाइकिल पर सवार होकर चले आ रहे एक युवा कवि आनन्द प्रकाश ने उन मनचले लड़कों का विरोध किया जो रिया को छेड़ रहे थे। उन चारों  लड़कों ने आनन्द प्रकाश को समझाते हुये कहा कि यह लड़की तुम्हारी कौन लगती है। देखो, तुम हम चारों के बीच में नहीं पडो तो अच्छा रहेगा ,वर्ना बहुत बुरा होगा।
     कवि आनन्द प्रकाश ने उन चारों लफंगों को समझाते हुये कहा कि यह लड़की वैसे तो समाजिक रुप से मेरी बहन लगती है लेकिन यह तुम सबकी मौसी लगती है यदि तुम सबको मेरी बात पर विश्वास नहीं हो तो तुम सब जाकर अपनी अपनी माँ से पूँछ लो और जहाँ तक महँगा पड़ेगा कि सस्ता पड़ेगा यह तुम जानो। यदि तुम सब अपनी जान कि सलामती चाहते हो तो यहाँ से निकल लो। पीछे  मुड़कर देखो तुम सबका पुलिसिया बाप आ रहा है। पीछे से आ रही पुलिस की गाड़ी को देखकर वे चारों मनचले युवक वहाँ से भागने लगे  लेकिन पुलिस ने उन चारों युवक को खदेड़ कर पकड़ लिया।
      पुलिस ने आनन्द प्रकाश की दिलेरी और बहादुरी के लिए आनन्द प्रकाश का आभार प्रकट किया और कहा कि आपके सराहनीय प्रयास के कारण आज एक लड़की गैंग रेप होने से बची,साथ हीं साथ उसकी इज्जत व जान दोनो बची। आपकी दिलेरी व सुझबुझ के कारण पुरा देश शर्मशार होने से बचा। हम अपने सीनियर से कहकर आपकी बहादुरी के लिये आपको  सम्मानित करवाएंगे  ।
      आनन्द प्रकाश ने पुलिस इंस्पेक्टर को हाथ जोड़ कर अभिवादन करते हुए कहा कि सर,आपका समय पर उचित सहयोग हीं मेरे लिये सम्मान है।
     युवा कवि आनन्द प्रकाश के चेहरे पर आत्मसंतोष के भाव झलक रहे थे।
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           अरविन्द अकेला

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