*होश वालों*
*स्वरचित रचना*
होश वालो को भी अबतक होश नही।
बदले हालात कैसे फिर देश की मेरे
जब मेरे देश के नेताओं में जोश नही।।
कोई जब भी मसीहा बनकर आना चाहे।
देशभक्ति की अलख फिरसे जगाना चाहे।।
जब आने नही देते मैदान में तो कैसे बदले
जब देश के गद्दारो को होता अफसोस नही।।
अब तक तो सत्तर सालों से यू लूटते रहे।
आत्मसम्मान को पैरों तले यू रौंदते रहे।।
अब चाहा जो किसी ने देश को जगाने को।
आत्मसम्मान को फिरसे विस्व में दिलाने को।।
तो कैसे देश निकले इस दलदल से भला।
जब दीमक को सुधरने को आता होश नही।
ये बताते जाऊ तुमको मेरे वतन के लोगो।
अब तो करो जतन भ्रष्ट लोगो को तुम रोको।।
यदि इतना भी जो मिलकर कर ना सको।
फिर क्यों करे आने वाले पीढ़ी रोष नही।।
प्रकाश कुमार मधुबनी
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