बिखरना क्यों हैं..
जैसा मिले किरदार तो गिरना क्यों है
हौसलों से हारकर बिखरना क्यों है
एक बार जो वादा हो गया सो हुआ
फिर अपनी बात से फिरना क्यों है
रंज का अपना कोई पैमाना नहीं होता
बेवजह इस कटार से चिरना क्यों है
ख्वाहिशों का समुन्द्र बहुत गहरा है
असीम प्यास ले सागर में तिरना क्यों है
तुम कुछ भी लिखने लगते हो "उड़ता"
तेरे अल्फाज़ो को सतत गिरना क्यों है
स्वरचित मौलिक रचना
द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता"
झज्जर - 124103 (हरियाणा )
संपर्क +91-9466865227
udtasonu2003@gmail.com
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