कवयित्री योगिता चौरसिया जी द्वारा 'बेटी' विषय पर गज़ल

बदलाव मंच
30/9/2020
बुधवार
बेटी दिवस पर..
गज़ल
ममता भरी मांँ की अवाज
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दुनिया के जल्लादों से,तुझे बिटिया बचा न सके।
ममता को अपनी,तेरी राहो मे हम बिछा न सके।।

गुलशन के बहार मे,पतझड़ आने रोक न सके।
ये जख्म ऐसा है कि,किसी को दिखा भी न सके।।

मुद्दतो का गम ये है,बिटियाआज जान न ले ले।
कोशिश करके भी,ये बिटिया भूला हम न सके।।

वीरंगना थी अंत तक लड़ी,बिटिया बचा न सके।
चीखी,चिल्लाई,रोई,होगी,बिटिया सुरक्षा दे न सके।।

मातम का आलम,अब समाचार की सुर्खियां रहा।
हवस के दरिंदों की,करतूतों सेअस्तित्व मिट रहा।।

कैसा  करें,कैसे बेटियों को पढ़ाये,और कैसे बचाये।
नंपुसक समाज,कमजोर कानून, कुछ कर न सके।।
स्वरचित/मौलिक
अप्रकाशित..
योगिता चौरसिया
अंजनिया मंडला(म.प्र.)

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