वो # जयंती सेन 'मीना' जी द्वारा बेहतरीन रचना#

वो.......

मन में बेचैनी सी होती है , चेहरे पर 
पसीना आता है ।
जाने किस देश से अंधड़ आकर, एक भूचाल उठा जाता है।
नभ में सारे छाए बादल ,
मेरी आंखों में उतर आते हैं ।
धड़कन जाने किस गुफा के 
अंधेरे कोने में समा जाते हैं ?
पेड़ों की हरियाली , रस बनकर 
क्यों आंसू बन जाते हैं ?
दिल का अकेलापन ना जाने ,
किस समंदर में डूब जाता है ?
कोई माने या, ना माने उस पल ,
मन मेरा ,मगन हो जाता है ।
धुन और रस का फव्वारा मेरे ,
सीने में फूट जाता है ।
चुपके से ,उसके आने का तब,
मुझे, पता लग जाता है।
मुझे पता है 'वो' ही मेरे ,
अकेलेपन की सहेली है
कोई उसे 'कविता ' है कहता ,
किसी के लिए , 'वो' पहेली है ।
मैंने इसको सजा लिया है 
माथे पर हो ज्यूं लाल बिंदी।
मैं  हिंद की रहने वाली हूं,
मेरी भाषा है प्यारी हिंदी।।

यह मेरी मौलिक एवं स्वरचित रचना है।

जयंती सेन 'मीना' नई दिल्ली ।
9873090339.

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