राष्ट्र को बचाइए
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सोचिये विचारिये सुधारिये स्वयं को सदा,
मानवता महक जग बिच फैलाइए। जाति प्रान्त भाषावाद छोड के विवाद सब,
आपसी भाईचारा, सुचि भाव को बढा़ईए।
परहित परमार्थ सत्य नेकी भलाई में,
होके लवलीन देश दीनता भगाइए।
कर सत्कर्म "कवि बाबूराम "स्वार्थ छोड़,
विश्वगुरु आर्यावर्त राष्ट्र को बचाइए
कटुता कपट छल छुद्र भाव त्याग सभी,
शान्ति सफलता सुख सार में समाइए।
जलती सर्वत्र बहू बेटियां दहेज हेतु,
दानव दहेज पर अंकुश लगाइए।
सरल, सरस शुचितम शुभ हितकारी,
राष्ट्रभाषा हिन्दी को ही सब अपनाइए।
एकता आजादी स्वाधीनता "कवि बाबूराम "
सब हिन्द वासी मिल अछुण्ण बनाइए।
चोरी, घूसखोरी सीनाजोरी घोर अत्याचार,
छोडी़ के पद लिप्सा इन्सान बन जाइए।
मानव सनातन सुधर्म कर्म बिच रह,
समरसता सुखद सदभाव फैलाइए
युवा राज, धर्मनेता जागो राष्ट्र कर्णधार,
बनिये दिलेर अब देर ना लगाइए।
दया धर्म करुणा में जुट "कवि बाबूराम "
कश्ती किनारे जर्जर राष्ट्र की लगाइए।
सबही का साथ बल सभी प्रश्नों का हल,
एक होके आगे सभी कदम बढा़इए।
श्रद्धा स्नेह प्यार दृढ़ विश्वास आस,
एकता आलोक से अनेकता मिटाइए।
पापी पतित पाक उग्र आतंकवादियों के,
खात्मा के हेतु प्राणपण से जुट जाइए ।
तप त्याग देके बलिदान "कवि बाबूराम "
भोर की ओर भारतवर्ष को ले जाइए।
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बाबूराम सिंह कवि
ग्राम-खुटहां, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा)
E-mail-baburambhagat1604@gmail.com
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मै यह प्रमाणित करता हूँ कि यह रचना मौलिक व स्वरचित है ।
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