देख के तुम मौत का तांडव हैरान हो..
हर दिशा में जीत कर ये भूल कर बैठे,
छेड़ कर प्रकृति को ये चूक कर बैठे,
ये ना कहना कि आज भी तुम नादान हो,
क्या हुआ जो आज इतना परेशान हो..
बदल डाला तुमने स्वरूप प्रकृति का,
डर गये अब खेल देखकर नियति का,
था गुरूर कि तुमहीं धरा पर ज्ञानवान हो ,
क्या हुआ जो आज इतना परेशान हो..
चाँद पर रखा कदम तुमने निराला,
विश्व विजय के लिए अंतरिक्ष को भी भेद डाला,
क्यूँ लगा तुमको कि तुम ही सर्वशक्तिमान हो,
क्या हुआ जो आज इतना परेशान हो..
आज हो डरे हुये एक अद्रश्य जीव से,
हो पड़े वीरानियों में जैसे तुम निर्जीव से,
मूर्ख हो कहते हो खुद कि बुद्धिमान हो ,
क्या हुआ जो आज इतना परेशान हो..
है समय अभी भी तुम इक रण करो,
खुद जिओ जीने भी दो ये प्रण करो,
ना करो ऐसा कि स्वयं ही अपमान हो,
क्या हुआ जो आज इतना परेशान हो..
बुद्धि, बल,ऐश्वर्य,विजय सब तुम्हें ही चाहिए,
विश्व में चहुँ ओर बस जय-जय ही तुम्हें चाहिए,
क्रत्य बदलो ना लगे कलयुग के तुम शैतान हो,
क्या हुआ जो आज इतना परेशान हो..
जीव हो तुम भी धरा पर याद रखो,
ना हृदय में अब कोई अवसाद रखो,
न अमर हो तुम भी धरा पे मेहमान हो,
क्या हुआ जो आज इतना परेशान हो..
इस महामारी को समझो खुद से इक संकल्प लो,
प्रकृति की गोद में ही सब तुम्हारे विकल्प हो,
सीख लो इस वक्त में ना रहे कि तुम अंजान हो,
क्या हुआ जो आज इतना परेशान हो,
देख के तुम मौत का तांडव हैरान हो...
प्रीति पान्डेय 🙏🙏
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