*आराधना*
लेखिनी को हाँथ ले,
हम सजल से हो गए।
दर्द जो ज़रा लिखा,
खुद ग़ज़ल से हो गए।
बीज बो दिए शब्द के,
कागज़ों के खेत में।
अंकुरित हुए अनुकल्प कुछ,
हम नवल से हो गए।
लेखिनी को हाँथ ले,
हम सजल से हो गए।
खिल रहें हैं रात दिन,
अप्राप्तयौवना (कली)।
सुंगधित सदा रहे,
हैं मन भाव मोहना।
साहित्य का सृजन करें,
हम मुकुल से हो गए।
लेखिनी को हाँथ ले,
हम सजल से हो गए।
दर्द जो ज़रा लिखा,
खुद ग़ज़ल से हो गए।
भावों की माला लिए,
हैं शब्द शब्द पिरो रहे।
प्रेम को भी लिख रहे,
हैं दर्द को भी जौं रहे।
खिल रहे हैं धूप में,
हम कँवल से हो गए।
लेखिनी को हाँथ ले,
हम सजल से हो गए।
हे माँ प्रसस्त कर,
कर रहे हैं साधना।
लेखिनी को पूजते,
हैं कर रहे आराधना।
मन अशांत सा है क्यूँ,
हम विकल से हो गए।
लेखिनी को हाँथ ले,
हम सजल से हो गए।
दर्द जो ज़रा लिखा,
खुद ग़ज़ल से हो गए।
अनुराग बाजपेई(प्रेम)
पुत्र स्व० श्री अमरेश बाजपेई
एवँ स्व० श्री मृदुला बाजपेई
बरेली (उ०प्र०)
८१२६८२२२०२
1 टिप्पणियाँ
सुंदर रचना अनुराग
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