किसान कि व्यथा#भास्कर सिंह माणिक (कवि एवं समीक्षक) कोंच जी द्वारा बेहतरीन रचना#

मंच को नमन

विषय-किसान की व्यथा

किसने सुनी आज तक
किसने समझी आज तक
कौन समझना चाहता है
किसान की व्यथा

कभी सूखा
कभी बाढ़
कभी पाला
कर देता है किसान को
निढाल
किसने देखे 
हृदय के घाव
कौन समझता वेदना
किसान की व्यथा

जो भरता है सबका पेट
कर देता है रात दिन एक
जो नहीं देखता
जेठ , पूस
रहता है तल्लीन
अपने कर्तव्य के प्रति
कभी नहीं करता शिकायत
खाकर रूखी सूखी
टूटी खाट पर
एक पल के लिए
करता विश्राम
सुनकर हो हो की आवाज
दौड़ पड़ता है 
कहीं चर न जाए फसल
अन्ना जानवर
कौन समझता त्याग
किसान की व्यथा

आध खुला अंग
मेला कुचेला अचकन
फटी तौलिया
देखकर भी नहीं होता
किसी का ह्रदय व्यथित
जिसके दम 
बलिष्ठ बनता है हमारा देश
उसके ही जीवन में क्लेश
कुछ लोग उसे ही समझते हैं
दीन हीन
वादे किसान उत्थान के
करते हैं सब
मंच पर 
उसके श्रम की चर्चा करते हैं सब
लेकिन
कोई समझना नहीं चाहता
किसान की व्यथा
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मैं घोषणा करता हूं कि यह रचना मौलिक स्वरचित है।
भास्कर सिंह माणिक (कवि एवं समीक्षक) कोंच

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