मनहरण घनाक्षरी
शिल्प ८ ,८ ,८ , ७
अपराध हो जाते हैं
अनजाने में कुछ भी
माँगता हूँ क्षमा आज
दया कर दीजिए ..।।
कभी तो मस्त होकर
या कभी त्रस्त होकर
मुझसे जो भूल हुई
क्षमा अब कीजिए ..।।
अभिमान में डूबा हो
कभी संयोगवश जो
दिल दुखा हो आपका
मन में न लीजिए..।।
जोड़कर दोनों हाथ
विनती करूँ आपसे
बैर भाव आप सभी
भुला अब दीजिए..।।
डॉ. राजेश कुमार जैन
श्रीनगर गढ़वाल
उत्तराखंड
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