शीर्षक - 🌞माया नगरी का महाभारत🌞
भीष्म द्रोण कर्ण गांधारी जब जब दुर्योधन का साथ निभायेंगे
कृष्ण सारिथी होंगे फिर वीर धनुर्धर के हाथों सारे कौरव मारे जायेंगे
पयोधि किनारे पयोद गर्जना
नित नव ज्वालामुखी का फटना
जो था देश का मनोरम उपवन
होता जा रहा नागफनी का वन
माया नगरी की माया बड़ी अजब है
चाल चलन सब बहुत गज़ब है
कदम कदम पर अटकन अड़चन है
जीवन की आशा कहीं बड़ी कहीं बड़ी भटकन है
रहना यहां बहुत दुष्कर है
दिल सबका यहां पत्थर है
दौलत शोहरत भगवान यहां है
सर्वोपरि सुख ऐश्वर्य भोग यहां है
डूब रहा आदर्श चरित्र यहां सागर में
रिश्तों संबंधों का मूल्य नहीं है साजर में
कोहराम मचा है समर्थ-शिवा की छाया में
सत्ता शिखर डूबा है नशे की माया में
पूरा प्रदेश गांव शहर षणयंत्रों से जल रहा है
पर नीरो बंशी बजा रहा है
दुर्योधन को उकसाने शकुनि पांसे फेंक रहा है
पांडवों को लाक्षागृह का जाल बुन रहा है
भटके चटके पुराने घटों को ही जिसने तीर्थ वना लिया है
सिंहासन सुतों ने उन्हीं घटों में पितरों का तर्पण कर लिया है
असत्य और राज हठ सत्य को कुचल रहा है
एक महिला का अपमान फिर महाभारत रचने जा रहा है
फिर कौरवों पांडवों में पाला खिंचने जा रहा है
नशा भोग विलास की बाड़ में कुछ का अस्तित्व बहने जा रहा है
इसीलिए बुझता हुआ दीपक ज्यादा फड़फड़ा रहा है
जो समझ रहे थे अपने को घनानंद का वंशज?
पाला अब उनका चोटी बांधे चाणक्य से होने जा रहा है
चंन्द्र गुप्त फिर से भारत को स्वर्णिम काल की ओर ले जा रहा है
भीष्म द्रोण कर्ण गांधारी जब जब दुर्योधन का साथ निभायेंगे
कृष्ण सारिथी होंगे फिर वीर धनुर्धर के हाथों सारे कौरव मारे जायेंगे
🙏 वन्दे मातरम् 🙏
चंन्द्र प्रकाश गुप्त "चंन्द्र"
अहमदाबाद , गुजरात
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मैं चंन्द्र प्रकाश गुप्त चंन्द्र अहमदाबाद गुजरात घोषणा करता हूं कि उपरोक्त रचना मेरी स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित है
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