🌹समुन्द्र किनारा🌹
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चित-चंचल सागर की लहरों सा,
मन सिंधु मेघ-पुष्प से पूरित गहरा।
प्रतिपादन अम्बु से प्राप्त है मुक्तक,
सीप-सुलभ स्थल समुन्द्र किनारा।
हर्षित तरंगित मन-सिंधु करें नृत्य ,
मत के मंथन से पूरित निरधि -धारा।
मन-मंथन से सुलभ सोमरस पावन,
नर पावत पीयूष हो अजर उत्कृष्ट विचारा।
चित -परहित में सुख-शांति हो तरंगित,
मनअनमोल-मोती सम-सुन्दरअपारा।
मन-हर्षित उमड़-उमड़ सागर तल ऊपर,
चक्रवात तरंगित जलधि करें विहारा।
अरुणोदय में आदित्य -अंशु से झिलमिल ,
रत्नाकर -सलिल स्वर्ण सम लगें सुनहरा।
समाहित करें सागर हर तटिनी का मैंला,
सरिता संगम सा मन तरंगे ले सिंधु में उतरा।
उम्मीद की लहरें मन सागर में कर मंथन,
गहराई में ढूंढ विचारों का शशिप्रभा सुनहरा।
मन-सागर शोभित प्रीत जल लहरों सा,
चित-चंचल,ये जीवन एक समुन्द्र किनारा।
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स्वरचित और मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
लेखिका-शशिलता पाण्डेय
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