*भारत की बेटी*
मैं भारत की बेटी हूँ!!!
भारत का गौरव बनने आई हूँ !!
निज अस्तित्व को साबित करने ...
पुरुषों की दुनियाँ में आई हूँ !!!
कोमल शरीर मन लौह सामान ...
दुनियाँ में यह मेरी पहचान !!!
दुख के गर्त में जाकर भी मैं उभरी...
सुख के पंखों से मैंने भरी उड़ान!!
कहीं लक्ष्मी कहीं बला मैं !!
कहीं प्रेम और कहीं घृणा मैं!! अनगिन रूप दिए भारत ने ...
मैं उस भारत की बेटी हूँ !!
मैं उस भारत की बेटी हूँ!!
कभी कचरे के डब्बे में मिलती ....
कभी कोंख में ही मारी जाती !!!!
कहीं भेड़िए देह नौंचते !!!
कभी मर्यादा ही बलि चढ़ जाती !!!
शोषण का झेल करअत्याचार .....
मन करने लगा जब चीत्कार !!!!
सुनी ना किसी ने करुण पुकार !!!तब त्याग दिया मैंने संसार !!!!!!
निज अबला रूप का गला दबाकर ...
अब सबला बन कर लौटी हूँ !!!
मैं भारत की बेटी हूँ !!!
हाँ मैं भारत की बेटी हूँ !!
मुझको प्यारा है स्वाभिमान !!!
मैं भारत का बनूंगी अभिमान !!!
नाज करेगा मुझ पर हिंदुस्तान !!
जब बढ़ाऊँगी मैं भारत की शान !!
सारी दुनियाँ को दिखलाऊँगी !!! अपने करतब से जहां झुकाऊँगी !!
मैं पगड़ी अपने हिंदुस्तान की !!अदब की मैं भी हूँ हकदार !!!
हया को मेरी जिसने भी छेड़ा !!उसका कर दूंगी बंटाढार !!!!
दृढ़ इरादों की मैं एक सोटी हूँ !!
हाँ मैं भारत की बेटी हूँ!!!!!
हाँ मैं भारत की बेटी हूँ!!!!!
चूल्हे चौके की हद पार करके!!
मैंने लिया है अपना नव रूप सँवार !!!
खेल जगत हो या व्यवसाय!!!
शिक्षा , चिकित्सा या अन्य निकाय!!
हर विभाग में परचम लहराया है !!अपना सिक्का जमाया है !!!
अब मैं नहीं अबला बेचारी !!!
हर सुखों की अब मैं हूँ अधिकारी!!
निज अस्तित्व ने मेरे अब भरी उड़ान !!!
ऋणी हुआ हमारा हिंदुस्तान!!!!
अब मस्तक पर इसके तिलक सी बैठी हूँ!!!!!
हाँ मैं भारत की बेटी हूँ!!!!!
हाँ मैं भारत की बेटी हूँ!!!!!
हर रूप में मैं दिखती मनमोहक !!हर घर आंगन की मैं हूँ रौनक !!!
हर रिश्ते का मैं हूँ आधार !!!!!
मुझमें है सिमटे संस्कार !!!!!
दो कुलों को संबल देती हूँ!!!!
दोनों कुलों से हो मेरी पहचान !!!परंपराओं की मैं हूँ वाहक !!!
घर संसार की मैं सुखदायक !!!
कहीं चूड़ी की खन खन करती हूँ!!!!!
कहीं पायल की करती झंकार !!!!सूरत और सीरत दोनों से !!!
जग को खुशियाँ देती हूँ!!!!!
मैं भारत की बेटी हूँ!!!!!!
हाँ मैं भारत की बेटी हूँ !!!!!
लेखिका-प्रतिभा द्विवेदी "मुस्कान" ©
सागर मध्यप्रदेश ( 27 दिसंबर 2018 )
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