*कविता :- कलम बोली*
_आज नन्ही मेरी कलम बोली,_
_कविता का उत्तर कविता से देता जा।_
_ओर जो तेरी कविता पढ़े,_
_उसकी कविता पर टिप्पणी देता जा।।_
_तभी कलम की स्याही बोल उठी ,_
_बात सही है में कितना चलती हूँ।_
_कागज़ कैसा भी क्यूँ न हो ,_
_अपने आपको पल-पल मलती हूँ।।_
_तुम भावों को गढ़ते हो यार सदा,_
_मैं अपने निर्मल आंसुओं से लिखती हूँ।_
_जब उच्चारण करते हो तुम शब्दो का,_
_तब हृदय से आनन्दित दिखती हूँ मैं।।_
_ये मंच के नए कवि कवयित्री,_
_मेरी लिखी कविता को क्या जानेंगे।_
_दूसरों कि कविता पढ़ते तो नही,_
_फिर ये मित्र क्या पहाड़ उखाड़ेंगे।।_
_आज में कलम स्याही की साथी कहती हूँ,_
_तुम जब लिखो तब मैं तत्पर रहती हूँ।।_
_तुम सबकी कविता पढ़ा करो मेरे बच्चों।_
_ये सत्य है बड़ा बनना सबको पढ़ना यही कहती हूँ।।_
_ख़ैर तुम्हे समझ न आए मेरा फरमान,_
_क्योंकि तुम्हे प्रमाण पत्र की तृष्णा है।_
_कितनो के ही घर डूब गए है यार,_
_जो गीता का भाव भरे वो कृष्णा है।।_
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_कृष्णा सेन्दल तेजस्वी_
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