चिंतन नही करते#भास्कर सिंह माणिक, कोंच जी द्वारा बेहतरीन रचना#

मंच को नमन
         चिंतन नहीं करते
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चित्र चिंतन दिवस हो
या अन्य दिवस हो
दिवस मनाकर
भूल जाते हैं
अपनी नित्य
चिंता में डूब जाते हैं
चिंतन नहीं करते

पल भर के लिए
करते हैं चर्चा
बनाते हैं लंबा चौड़ा
कार्यक्रम का पर्चा
फूल माला रोली चंदन
चढ़ाकर करते इति
बताते हैं समाज में
अपना वैभवशाली खर्चा
त्याग बलिदान का
चिंतन नहीं करते

दौड़ते हैं रेल की तरह
दिमाग चलाते हैं कंप्यूटर की तरह
संयम कैसा संयम
गिरते सूखी लकड़ी की तरह
भूल जाते हैं मशीन में तेल डालना
चिंता करते 
चिंतन नहीं करते

पूर्वजों का अनुकरण नहीं करते
नेक राह का वरण नहीं करते
सिर्फ प्रतिमा का अनावरण करते
अपने शुद्ध आचरण नहीं करते
गीता कुरान बाइबल महान ग्रंथ
चिंतन नहीं करते

स्वयं का बखान करते नहीं थकते
लक्ष्य पर निशाने नहीं लगते
कोसने से ढोल कब फूटे
दूरी नापने वाले शिखर नहीं चढ़ते
करते बातें प्रगति की
चिंतन नहीं करते
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मैं घोषणा करता हूं कि यह रचना मौलिक स्वरचित है।
भास्कर सिंह माणिक, कोंच

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