कवि नारायण प्रसाद जी द्वारा 'मुझे इस बात का मलाल है' विषय पर रचना

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"मुझे इस बात का मलाल है।"


आज गली-गली में कई दलाल है।
भ्रष्टाचार का चहुँओर फैला जाल है।
बेईमानों के माथें पे सम्मान का गुलाल है।
मुझे इस बात का मलाल है ।।

जनता के सेवक मालामाल है।
मालिक होकर जनता कंगाल है।
किसानों का तो बुरा हाल है।
मुझे इस बात का मलाल है।।

ये क्या?बेईमानों का काल है!
गंजे लोगों के सिर पे आज घने बाल है।
दाँत वालों के चिपके हुए गाल है।
मुझे इस बात का मलाल है।।

ये कैसा?और किसका कमाल है?
मित्र!मित्र को मारता आज गाल है।
भाइयों के बीच खड़ा हो रहा दीवाल है।
मुझे इस बात का मलाल है।।

कोई भी घटना हो ,सड़कों पर होता बवाल है।
कुकर्मियों को देखों उसकी इतनी मजाल है।
खुलेआम घूम रहे,कोई क्यों नहीं खींचता खाल है।
मुझे इस बात का मलाल है।।

आप सभी से मेरा एक सवाल है?
आख़िर! किसकी ये चाल है?
चापलूस लोगों का क्यों ?ऊँचा भाल है।
मुझे इस बात का मलाल है।।

जब आता चुनाव का साल है।
छूप-छूप कर बाँटते कंबल और शाल है।
जाने क्यों नेता लोग हो जाते वाचाल है।
मुझे इस बात का मलाल है।।


ये तो ट्वेंटी-ट्वेंटी का साल है।
जिधर भी देखो कोरोना का काल है।
हर जुबाँ पे बेरोजगारी का सवाल है।
मुझे इस बात का मलाल है।।


कवि नारायण प्रसाद
     आगेसरा(अरकार)
    जिला- दुर्ग छत्तीसगढ़
(मौलिक एवं स्वरचित रचना)

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