मंच को नमन
मैं इस मंच में नयी हूँ!
और ये मेरी पहली रचना है।
शीर्षक: भूताहा सपना
टूटी खिड़की,मकड़ी का जाला
सपने जब हम! देखते हैं, ''लिज़ा'' वाला!!
"खर-खर" कि आवाज़ आऐ...
"झींगूर" भी मुझे डराये...
"जूगनु" कि तो बात ही छोड़ो...
रात में "चूड़ैलों" को रास्ता दिखाए ...
"गिरगिट" कि आवाज़...
वही... काली-घनेरी रात...
और जब मौसम हो बरसात!
वो भी ठीक!
12 बजे वाली रात...
मेरे ख्वाबो में आए...
आ...! कर के मुझे 'डराये'
फिर...! सपने में जब "भूतनी"
मेरा 'गला'दबाये...
तभी "हनुमान चालिसा" पढ़ हम!
खुद को "भूतनी" से छूड़ाये!!
नाम:सुमन
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😘😘😘
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