एक शाम शहीदों के नाम
शाहीद हुए सरहद पर जो,
वो वीर अमर बलिदानी थे।
नापाक इरादे को रौंद दिए,
वह सैनिक हिंदुस्तानी थे।
शांति प्रिये रहे हम सदा,
नहीं पसन्द हमें लड़ाई।
उसका सर कलम किया,
जिसने भी आँख दिखाई।
हमने जिसको छत दिया,
वो हमें ही रौब दिखाते ।
खाने की औकात नहीं,
जंग लड़ने आ जाते ।
जब दुश्मन ने ललकारा,
सबक सिखाया जवानों ने।
मौन को कमजोरी समझा,
खून के प्यासे हैवानों ने।
जिस थाली में खाते रोज,
उसमें ही छेद कर जाते।
माफी मांगे बेशर्म सभी,
हर बार लड़ने आ जाते।
नफरत की दीवार मिटा दें,
कसम मुझे इस माटी की।
फिर स्वर्ग सा रौनक दिखे
इस कश्मीरी घाटी की।
सुकुन मिले उस माँ को,
जिसने लाल को खोया है।
ठंडक मिले उस पिता को,
जो तन्हा महीनों तक रोया है।
युद्ध को भूले नहीं कभी,
सारा देश तब रोया था।
बहन ने भाई,पुत्र ने पिता,
किसी ने सिंदूर खोया था।
अमर शहीदों की गाथा,
हम सभी हैं मिल गाते।
श्रदांजलि अर्पित करने को,
विजय दिवस मनाते।
आप सबों को कारगिल विजय दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
दीपक कुमार डिम्पज
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