शशिलता पाण्डेय जी द्वारा विषय गुरु शिष्य का भाग्य विधाता पर खूबसूरत रचना#

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  गुरु शिष्य का भाग्य विधाता
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गुरु शिष्य का भाग्य विधाता,
 ज्ञान की ज्योति कर प्रज्वलित।
पथप्रदर्शक और भविष्य निर्माता,
गुरु शिक्षण से जीवन आलोकित।
गुरु शिष्य का सबसे सुंदर नाता,
अग्नि सा जलकर देता ज्ञानशक्ति।
बिना गुरु के ज्ञान नही पूरा होता,
गुरु ब्रह्म गुरु विष्णु गुरु महेश्वर।
गुरु माता-पिता से बढ़कर प्रदाता,
बिन ज्ञान गुरु के मानवता नही विकसित।
गुरुज्ञान ही आत्मसमान से जीना सिखाता
देश के भावी भविष्य का निर्माण निर्मित।
अज्ञान का हृदय से तिमिर दूर करता,
 जलाकर हृदय में ज्ञान की एक ज्योति ।
 करे गुरु ज्ञान पशुता में मनुष्यता जागृत
आचरण और मर्यादा का ज्ञान सिखाता।
गुरु द्वारा शिष्य का स्वाभिमान निश्चित,
जग में सम्मान से जीवन निर्वाह सिखाता।
गुरु ही शिष्य में करता सुविचार समाहित,
तराशकर पत्थर  को हीरे सा चमकाता।
गुरु ज्ञान  से निर्मल ज्ञान की धारा प्रवहित,
 गुरुज्ञान सभ्यता का विकास करता।
हृदय का तमस दूर करता विचार कलुषित,
शिक्षा की तलवार से अज्ञानता संहार करता।
कर ज्ञान अर्पण हृदय को करता परिष्कृत,
 एक शिष्य अपने योग्य गुरु का दर्पण होता।
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स्वरचित और मौलिक
सर्वधिकार सुरक्षित
कवयित्री:-शशिलता पाण्डेय

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