*स्वचित रचना*
प्रधान सेवक जो कहते स्वयं को
उनको झुककर नमन हम करते है।
भेदभाव मिटा समभाव जो लाते है।
देश में राष्ट्रवाद को जो जगाते है।
ललकार से जो दुश्मनों दहलाते है।।
पाक व चीन को जो सबक सिखाते है।
भ्रष्ट नेताओं को जो खड़ी खोटी सुनाते है।
जो युवाओं को आगे बढ़ने को प्रेरित करते।
जो नित सबसे बाद में सोते, जल्दी उठ जाते है।
जिन्होंने राम मंदिर मस्जिद का हल निकलवाया।
जिनके प्रयास से तीन तलाक पर अंकुश लग पाया।
जिनके कारण धारा तीन सौ सत्तर विलुप्त हुआ।
जिसने सदा ही देश का डंका विश्व में बजाया है।
जो हिन्दी को गर्मजोशी से विश्व पर बढाते है।
जो स्वच्छ ,आत्मनिर्भर भारत का सपना दिखाते है।
जो सदा समय समय पर सैनिक का उत्साह बढाते हैं।
जो कर्म के बल पर सदा नित नए इतिहास बनाते हैं।।
उनके जन्म दिवस पर उनका सम्मान करे।
आओ ना ऐसे युग पुरुष का गुणगान करे।।
जो लगा हुआ है इस पुण्य भूमि के सेवा में
उनके नक्शे पे चल के नव कीर्तिमान करे।।
*प्रकाश कुमार मधुबनी*
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