हिन्द और योग

हिन्द और योग।।केवल मुक्तक चार।। अवलोकन करें......                              
 रोग शोक आधि व्याधि चाहते हो मुक्ति आप,
जप तप ध्यान योग रोज अपनाइए ।।             वादा कीनो आय गर्भ ईश मुक्त करें आपु,
मुल पंथ ईश की देखाई सोझ जाइए।।                भाखै कवि चंचल बतावैं कृष्ण ग्यान पार्थ,
मानव पामर सद्बुध्दि काहे भूल जाइए।।               आए जब ते जग जीव माया मा जकरि गयो,
साथ नाही जानो कबो धरम पंथ लाइए ।।1 ।। 

लाख चौरासी घूमेतन भागि पाए मानव, 
कर्म धर्म सच सत्य  सन्मार्ग जाइए।।                 नीको धर्म ध्यान प्रभू परम धर्म मानव केवल,
मानव होके मानव से ना ईर्ष्या बढा़इए ।।          भाखै कवि चंचल चढा़व उतार जीवन रहै,
योग जस विलोम अनुलोम तहँवा पाइए ।।      भोग ते महान योग योग ते महान योगी,
छाँडि़ कपट छल छद्म  योग ही रमाइए ।।2 ।। 

 भुलाय तीनौ संस्कृति औ छाँडो़ वेशभूषा और,
संस्कृति विशुद्ध भारतीय अपनाइए।।                राह रीति पूरवजन  कै छाँडि दीनो जबुते प्यारे, पालिए अपार कष्ट निजता मा आइए।।              संस्कृत ही देवभाषा वेदभाषा प्यारे मानो,
अनार्य मत छाँडि़ छाँडि़ आर्य पंथ आइए।।          भाखै कवि चंचल ई भारती पुकारे प्यारे,
मेरे प्यारे बच्चों भारतीयता में आइए।।3 ।।। 

  गुलामी आठ शतको की झेली माँ ये भारती,
पाय नीकोसमय प्यारे व्यर्थ ना गँवाइए।।            पास औ पडो़स को विलोक अवलोकि प्यारे,
नींद जाने पहले ही गौर फरमाइए।।                   काटी है मुसीबतें औ पाए जो अपार कष्ट,
याद इतिहास पेज थोड़ा़ पढ जाइए।।                भाखै कवि चंचल माँ भारती पुकारै प्यारों,
द्रोही आतताइयों को देश से भगाइए ।।4 ।।                                  आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी, चंचल।ओमनगर, सुलतानपुर, यूपी।।             9125519009,8853521398।।

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