शीर्षक- नारी कैसे सशक्त बने
नारी कैसे सशक्त बने।
सब चाहें नर की भक्त बने।
दफ्तर में मांग एक वक्ता की।
घर में मांग एक मौन भक्ता की।
दफ्तर का होता है ढ़ेर गृह कर्म।
दोनों जगह निभाती ओढ़ के शर्म।
अशिक्षित होने पर मिलता ताना।
शिक्षित होने पर अलग अफसाना।
नारी स्वछंद ना गा सकती तराना।
मुश्किल है घमंडी नर को हराना।
जाने कैसे बनते स्त्री पर हंसगुल्ले।
नारी रखती है कदम नपे-तुल्ले।
चाहते सहनशीलता पर आसक्त बने।
कभी ना खौले ऐसा उसमें रक्त बने।
-चेतना सिंह,पूर्वी चंपारण।
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