उमेश बुडाना जी द्वारा खूबसूरत कविता#अन्ना हजारे#

दुलारे हजारे अन्ना,
फिर कब दोगे धरना?
क्या त्रस्त नहीं अब देश की जनता,
या बन्द किसान हुए मरना?

इक आस जगी कि मिला है कोई,
गांधी की याद दिला दी थी,
महंगी ,भ्रष्ठ उस निक्कमी,
सरकार की चुलें हिला दी थी।
अब देश वही है,कलेष वही,
वही, कीचड़ सा झरता झरना।
फिर कब दोगे धरना।

चौड़ी छाती पगड़ी में तुमको,
दिखता क्यों न अंतर,
सूना पड़ा पुकार रहा है,
दिल्ली का जंतर मंतर।
ज्योति गई चक्षु की तेरी,
या छोड़ा अंजन करना!
फिर कब दोगे धरना?

जो गान साथ में देश ने तेरे,
गाया था महंगाई का,
वो शत्रु था या यह मित्र,
या धर्म निभ रहा भाई का।
आशा है तू जगता होगा,
या हर-हर तू भी जपता होगा।
क्या किया तब याद करो,
तय करो,क्या करना?
फिर कब दोगे धरना?
                            उमेश बुडाना
                            झुंझुनू(राज.)

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