मेरे पापा, मेघा जोशी जी

प्रस्तुत पंक्तियाँ कविता की दृष्टि से नहीं लिखीं, जो मन में आता गया टाइप होता गया, बस लिखती चली गई। कई त्रुटियाँ होंगी , लेकिन भाव अमूल्य हैं इसलिए प्रेषित कर रही हूँ.....

 *शीर्षक-* *मेरे* *पापा* 

मैं शब्द खोजती रही, 
दिन सारा ले लिया।
निःशब्द हूँ अब भी,
अब बस जीवनक्रम का 
सहारा, ले लिया।
क्या लिखूँ उनके बारे में
 जो, आधार हैं मेरा।
पहले जीवन,
फिर
बचपन में मिली पेन्सिल,
वर्णमाला,
और वो छोटा सा बस्ता,
फिर लेखनी,
और सपनों का आकाश,
जिसमें उन्होंने बस मुझे,
उड़ने दिया।
यूँ कहूँ तो मेरा आकाश,
मेरी उड़ान,
मेरा हौसला,
पापा आप ही हो।
मेरी आवश्यकता,
मेरी आपूर्ति,
मेरा संयम,
और प्रेम मूर्ति,
पापा आप ही हो।
आपको भी तो चुभते हैं,
हर घाव मेरे,
आप ही पहले चिन्ता में,
आते हो देखकर,
अभाव मेरे।
आप सब कुछ हो, जितने
लेखनी में भाव मेरे।
मैं थोड़ी बुद्धू हूँ,
लड़ झगड़ भी लेती हूँ,
जैसे आप प्यार दिखाते नहीं,
मैं भी चुप ही रहती हूँ।
आप जब मेरी बचपन की,
फोटो देख आँसू मन में,
बहाते हो;
तो अपनी बेवकूफ "मोनू",
का दिल भी दुखाते हो।
अपनी समस्याएँ मुझे भी,
बताया कीजिए,
सुख तो गेट से ही बाँटते आते हो,
दुख भी बाँटा कीजिए।
मेरी एक ही नाराजगी है आपसे,
मुझे दर्द नहीं बताते आप।
बस प्यार ही प्यार जताते आप..
अरे पढा लिखा ,
शिक्षिका बना दिए हो आप
कष्ट मुझे जीना सिखलाइए,
दुनिया तो दिखला चुके,
अपना दिल भी कभी दिखलाइए..
दिल भी कभी दिखलाइए...


                  -- मेघा जोशी
             खटीमा, उत्तराखण्ड।

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