आँसू

शीर्षक- आँसू

छलकते ये आँखों से ,संवेदना लेकर बहते हैं ।
जब दिल खामोश होता,दिल की जुबान बनते हैं ।।

दु:ख  में साथ निभाते ,तन्हा बादल बन बरस जाते ।
खुशी में भी थिरकते ,कपोलों में इठलाते मचलते ।।

कागज में गिरते तो ग़ज़ल बन जाते ।
बच्चों की आँखों में जा माँ को टेर लगाते।।

कभी आँसू घड़ियाली बनते,धोखा देते।
कभी मुखौटा पहन कर सहानुभूति बटोरते ।।

कभी पथरा जाती आँखें, ना बहता आँसू का निर्झर,
दुख मातम हृदय में पसर जाता, लाता बहुत कहर।।

कभी भक्ति में बहते हैं ,कभी वियोग बयाँ करते। आँसू हृदय की दशा ,व्यथा लिखते।।

कभी किसी के आँसू का कारण न बनना 
मानव बन कर सबके आँसू पोंछा करना।।


अंशु प्रिया अग्रवाल 
मस्कट ओमान 
स्वरचित 
मौलिक अधिकार सुरक्षित

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