विचारों के शहर गुरुवर


विचारों के शहर गुरुवर
विचारों के शहर ,गुरुवर,अनौखी वेद-शाला हो ,अंधेरों से हमें लड़ना सिखाया,दिव्य ज्वाला हो ।मिटाया भ्रम सदा मन से ,धर्मपथ मार्ग सिखलाया ,ज्ञान का भव्य सागर हो ,सृजन की काव्य-शाला हो ।।सदा बढ़ता रहूँ आगे ,दीप ऐसा दिखाया है ,कर्मपथ चल सकूँ सच के ,मुझे ऐसा बनाया है ।कर्म करना धर्मवृत ले ,अनुशरण को बनूं सक्षम ,संघर्षों से पीछे ना हटूं ,दृढ़ता सिखाया है ।।गुरु के रूप में अवतार ,इश्वर स्वयं आते हैं ,गुरु वरदान देते हैं , विजेता ही बनाते हैं ।गुरू पहचान शिष्यों की ,अधिष्ठाता विधाओं के,क्षितिज तक शून्य से पहुंचे ,पूर्णता दिलाते हैं ।।पात्रता है नहीं सम्भव ,बिना गुरु ज्ञान रोता है ,दशा जीवन की महकादें ,दिशा का भान होता है।कभी उपकार जीवन में ,गुरु का ना उतर पाये ,पथिक बन गुरु कृपा के ज्ञान,अम्रत पान होता है ।।लिखूं क्या ? शब्द गुरु को मैं ,मुझे गुरु शब्द प्यारा है ,साधना मैं करूँ जिनकी ,मुझे दिखता किनारा है ।ज्ञान ग्रंथो से दुर्लभ है ,गुरु का ज्ञान सर्वोत्तम ,नमन वंदन ,गुरु चरणम ,ज्ञान -विज्ञान धारा है ।।डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज"अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश)9458689065

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ